Lakshmi Ashtakshari Mantra

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र (Lakshmi Ashtakshari Mantra) मनोकामना पूर्ण करने का महामंत्र, धन की वर्षा

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र (Lakshmi Ashtakshari Mantra) को देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली साधन माना जाता है। यह मंत्र आठ अक्षरों का समूह है, जिसे श्रद्धा और विश्वास के साथ जपने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

देवी लक्ष्मी को धन, वैभव, और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है, और इस मंत्र की साधना से उनके आशीर्वाद से घर में धन-धान्य की वर्षा होती है।

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र कब करें?

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र का जाप करने के लिए सबसे उपयुक्त समय शुक्रवार का दिन माना जाता है, क्योंकि यह दिन स्वयं देवी लक्ष्मी को समर्पित है। इसके अलावा, दीपावली, अक्षय तृतीया, पूर्णिमा, और विशेष रूप से कार्तिक मास की अमावस्या को भी इस मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है।

मंत्र का जाप ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) में करना सबसे शुभ माना गया है, क्योंकि इस समय वातावरण शांत और ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। यदि ब्रह्म मुहूर्त में संभव न हो तो संध्या काल में पूजा स्थान पर दीपक जलाकर भी मंत्र का जाप किया जा सकता है।

मंत्र जाप के दौरान भक्त को शुद्धता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जाप से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और एक शांत स्थान पर बैठकर देवी लक्ष्मी का ध्यान करें। घर के मंदिर या पूजास्थल पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने बैठकर, दीपक जलाएं और श्रद्धा भाव से इस मंत्र का उच्चारण करें।

इस दौरान कमलगट्टे की माला से 108 बार जाप करना शुभ माना जाता है। मंत्र जाप के बाद देवी लक्ष्मी की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। नियमित रूप से इस नियम के अनुसार मंत्र का जाप करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में धन, सुख-समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र के फायदे:

  1. धन और समृद्धि: इस मंत्र के नियमित जाप से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में धन-संपत्ति की वृद्धि होती है।
  2. मनोकामना पूर्ति: भक्त की इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।
  3. नकारात्मकता का नाश: यह मंत्र घर और मन की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
  4. व्यापार में वृद्धि: व्यवसाय या नौकरी में सफलता के लिए यह मंत्र अत्यंत प्रभावी माना गया है।

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र करने का नियम:

  1. शुद्धता: मंत्र जाप से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. मंत्र का उच्चारण: मंत्र का सही उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। जाप शांत और एकाग्र मन से करें।
  3. माला का प्रयोग: रुद्राक्ष या कमलगट्टे की माला से मंत्र का 108 बार जाप करें।
  4. श्रद्धा और भक्ति: देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल अर्पित करें और श्रद्धा भाव से मंत्र जाप करें।

लक्ष्मी अष्टाक्षरी मंत्र

आदि लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये ।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।

पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् । 

धान्य लक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।

मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् । 

धैर्य लक्ष्मी

जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये ।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।

भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् । 

गज लक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।

हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् । 

सन्तान लक्ष्मी
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।

सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।

विजय लक्ष्मी
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।

कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।

विद्या लक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये ।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।

नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।

धन लक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।

वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी

।। श्लोक ।।

शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।

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